जिंदगी की भूल नही है जीने के ढंग में भूल है।
जीने का ढंग न आया गलत ढंग से जिए।
जहां स्वर्ण बरस सकता था, वहां हाथ में केवल राख लगी।
जहां फूल खिल सकते थे, वहां केवल कांटे मिले।
और जहां परमात्मा के मंदिर के द्वार खुल जाते,
वहां केवल नर्क निर्मित हुआ।
जीवन तो सिर्फ एक खुला अवसर है,
जो चाहो वही बन जाएगा।
बुद्ध इसी में निर्वाण बना लेते है।
हिटलर जैसे लोग इसी में महानर्क बना लेते है।
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